21 फरवरी 2023 अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस निबंध

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

           आज का दिन यानी 21 फरवरी को पूरे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है। इस पहल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है।

       संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में बोली जाने वाली 6000 भाषाओं में से लगभग 43 प्रतिशत भाषाएं  समाप्त होती जा रही हैं।  गायब होने की रफ्तार तीव्र है, तकरीबन हर महीने में दो भाषा गायब हो जाती है, इस से क्षेत्रीय, सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत नष्ट होने के कगार पर है। डिजिटल क्रांति में पिछड़ती छोटी भाषाएं भी अपना अस्तित्व नहीं बचा पा रही है। आज डिजिटल प्लेटफॉर्म  में सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग होता है। 

     अब अगर हम अपने देश की बात करें तो भारत प्राचीन समय से बहुभाषी देश  रहा है यहां  ''चार कोस पर बदले बानी'' तो है ही और यही विविधता इसकी पहचान भी है। यहां मातृभाषा के रूप में 19,569 भाषाएं या बोलियां बोली जाती हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाएं भारत के 93.71 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा है। भारत में 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वालों की संख्या एक लाख से कम है।  किंतु ये बहु-भाषाई संस्कृति भी अब खतरे में  है।
 वैश्वीकरण के कारण बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिये विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने का एक प्रमुख कारण है। अगर डिजिटल आंधी में हमने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अब भी प्रयास नहीं किया तो शायद 22 अनुसूचित भाषा भी अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएंगी ।

    अब सवाल यह उठता है कि आखिर 21 फरवरी को ही अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है?

    21 फरवरी उस वर्षगांठ को भी चिन्हित करता है जब बंगलादेश  के लोगों ने बंग्ला भाषा की मान्यता के लिए लड़ाई लड़ी थी। 1947 जब पाकिस्तान  बना था तो इसमें भौगोलिक रूप से दो अलग-अलग हिस्से शामिल थे जिन्हें पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में जाना जाता था। इन दोनों हिस्सों में न केवल हज़ारो मीलो की दूरी थी बल्कि आश्चर्यजनक रूप से सांस्कृतिक और भाषाई  विभिन्नताएं थीं।1948 में, पूर्वी पाकिस्तान के धीरेंद्रनाथ दत्त ने पाकिस्तान की संविधान सभा में मांग की कि उर्दू के अलावा बांग्ला राष्ट्रीय भाषा बनाया जाए। ऐसा न करने पर कई विरोध प्रदर्शन हुए, हालाँकि, पाकिस्तान की सरकार ने इन विरोधों को शांत करने के लिए जनसभाओं और रैलियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया। 21 फरवरी 1952 को ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया था। तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसा दी। इस घटना में 16 लोगों की जान गई थी।

      सबसे पहले  दिवस को मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा दिया गया था। बंगलादेश  के अस्तित्व में आने के बहुत बाद में, रफीकुल इस्लाम का प्रस्ताव बांग्लादेश की संसद में पेश किया गया , फिर बंगलादेश सरकार द्वारा यूनेस्को को एक औपचारिक प्रस्ताव भी दिया गया था। 17 नवंबर, 1999 को, यूनेस्को की 30 वीं महासभा ने सर्वसम्मति से संकल्प लिया कि “1952 में इसी दिन अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों की याद में 21 फरवरी को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया जाए।”
 
   अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर मातृभाषा है क्या? इस का महत्व क्या है?

       बचपन में जिस भाषा से पहला परिचय होता है,जिस भाषाई परिवेश में हम रहते हैं, बढ़ते हैं वह भाषा मातृभाषा कहलाती है। हमनें अपने माता-पिता से जो पहली भाषा सीखी, वह  हमारी  मातृभाषा। साथ ही, आपने अपने पूर्वजों से जो भाषा सीखी है, वह आपकी मातृभाषा हो सकती है। यह भी संभव है कि हमारी  मातृभाषा हमारी  राज्य भाषा या क्षेत्रीय भाषा से भिन्न हो और हमारी एक से अधिक मातृभाषा भी हो सकती है। लेकिन, हमारी  मुख्य मातृभाषा हमेशा वही होती है जो हमारे  परिवार के सदस्य आमतौर पर घर में इस्तेमाल करते हैं। आपकी मातृभाषा केवल संवाद करने की भाषा नहीं है, बल्कि यह आपकी पहचान भी है। यह दुनिया को दिखाता है कि “आप कौन हैं?”। किसी व्यक्ति की वास्तविक पहचान विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, चार प्रमुख कारक जैसे पदनाम, निवास, संबंध और भाषा। एक ही नाम के एक हजार व्यक्ति हो सकते हैं। लेकिन, यही चार चीजें हैं जो एक व्यक्ति को बाकी लोगों से अलग करती I भाषा का महत्व न सिर्फ राष्ट्रीय एकता में बल्कि देश की संस्कृति की मजबूती में निहित होता है। मातृभाषाएं हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान एवं हमारे सामूहिक ज्ञान और बुद्धिमत्ता का भंडार हैं।

        यह दुर्भाग्य है कि हमारे यहां लोग मातृभाषा में बात करने से कतराते हैं। कोई अगर अपनी मातृभाषा में बात करता है तो उसे गंवारु मान लिया जाता है, उसके कौशल को कम करके आंका जाता है। अंग्रेजी मानसिकता ने भाषा को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। भारत जैसे देश में करोड़ों विद्यार्थियों की मातृभाषा और पढाई की भाषा समान नहीं होने के कारण शिक्षा अक्सर चुनौतीपूर्ण बन जाती है। यहां अक्सर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण अधिकांश छात्र केवल नियमों और अवधारणाओं को रटते हैं, जो समय के साथ,  उनके कौशल और ज्ञान को नष्ट कर देता है।

        इस के अलावा यह एक कटु सत्य है कि वर्तमान में हमारे यहां लगभग 80%  माता-पिता अंग्रेजी  को आराम से नहीं समझ सकते हैं। और इसलिए, वे अपने बच्चों को समय पर फीस देने के अलावा कोई शैक्षिक  मार्गदर्शन भी नहीं दे सकते हैं। यहां मैं किसी भाषा के विरुद्ध नहीं  हूं  लेकिन  इस संदर्भ में भारतेंदु हरिश्चंद्र की दो पंक्तियां अवश्य कहना चाहूंगी-
 
अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
 पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।

विभिन्न वैज्ञानिक  शोधों के अनुसार व्यक्ति मातृभाषा में चीजों को तुलनात्मक रूप से बेहतर ढंग से सीख सकता है। मातृभाषा  में कुछ सीखने से निष्कर्ष और बहस क्षमता में भी वृद्धि होती है। संवाद करने के अलावा भाषा का महत्व न सिर्फ राष्ट्रीय एकता में बल्कि देश की संस्कृति की मजबूती में निहित होता है। मातृभाषाएं हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान एवं हमारे सामूहिक ज्ञान और बुद्धिमत्ता का भंडार हैं।

मातृभाषाओं की रक्षा के लिये भारत सरकार की पहल:

हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक मुख्य पहल  है।
मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में मातृभाषाओं में पढ़ाई की शुरुआत हो रही है। 
बहुभाषी समाज के लिए सरकार ने भी राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, भारतवाणी परियोजना जैसी योजनाएं बनाई हैं। संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण हेतु ‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’।
हाल ही में केरल राज्य सरकार की एक पहल नमथ बसई कार्यक्रम आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को स्थानीय भाषाओं में शिक्षित करना बहुत फायदेमंद साबित हुई है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2022 से वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया गया है।

अगर हम अपनी मातृभाषाओं को बढ़ावा नहीं देंगे तो भाषाई विविधता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। 
मातृभाषा गौरव का परिचायक है। इस गौरव का भान तभी हो सकता है जब मातृभाषा में शिक्षा, संचार, नौकरी सुगम हो। निरंतर उपयोग से ही भाषाएं समृद्ध होती हैं और हर दिन एक मातृभाषा दिवस होना चाहिए परंतु केवल एक दिन मनाने से भाषाओं को संरक्षित एवं जीवंत नहीं बनाया जा सकता । इसके लिए हर किसी को अपने घरों में मातृ भाषा का उपयोग करना होगा। दैनिक जीवन  में शामिल कर ही इसे प्रशासन, तकनीकी क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सकता है।















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